किट किट करके बजते दांत
सर्दी में जम जाते हाथ
ऊनी स्वेटर भाये तन को
गरम चाय ललचाये मन को
सन-सनी हवा खीजवाती हैं
भीनी-भीनी धूप बस याद आती हैं
दिल दुखाते रोजमर्रा के काम
मन कहे रजाई में घूसकर करें आराम
पर घड़ी शोर मचाती हैं
सबकों ठंडी में भगाती हैं
दिन चढ़े भी गहरा अँधेरा
चारो तरफ घना हैं कोहरा
लगता हैं बादल मिलने आते हैं
ठंडी का मल्हार गाते जाते हैं ||
कर्णिका पाठक
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छणिकाएं
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
1. आओ एक बार फिर बैठें साथ - साथ
उन सहेजे सपनों के लिए
जो सिर्फ सपना नहीं थे
एक जिद थे .
2. तुम्हारे आने से रुक जाता है समय
तुम्हारे जाने से कटता नहीं समय
खेलता है खेल समय , या है
मेरा पागलपन गिरफ्त में , समय की .
3. ढूंड़ता है प्यार सौंदर्य को
प्यार तो स्व्यम ही सुंदर होता है
होता है प्यार त्याग की प्रतिमूर्ति
त्याग तो स्व्यम ही प्यार की देन है
4. हर शाम के साथ दिन ढल जाये
यह जरूरी होता तो फिर
हर सुबह के साथ
दिन भी तो निकलना चाहिए था
5. नहीं चाहता मैं कि कोई तुम्हे अबला कहे
पर सबला बनके तुम पुरुष की पौशाक तो मत पहनो
ऐसा करने से तो प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता नष्ट होती है.
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
(INDIA)