कबीर साहित्य - दोहे, साखियाँ, पद व कबीर भजन
कहत कबीर
कबीरदास जी का नाम हिंदी भक्त कवियों में बहुत ऊँचा माना जाता है। आप निर्गुण भक्ति धारा की ज्ञानमार्गी शाखा में सर्वोपरि माने जाते हैं। कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं।
कबीर की रचनाओं को मुख्यत: निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है: रमैनी, सबद व साखी।
'रमैनी' और 'सबद' गाए जाने वाले 'गीत या भजन' के रूप में प्रचलित हैं। 'साखी' शब्द साक्षी शब्द का अपभ्रंश है। इसका अर्थ है - "आँखों देखी अथवा भली प्रकार समझी हुई बात।" कबीर की साखियाँ दोहों में लिखी गई हैं जिनमें भक्ति व ज्ञान उपदेशों को संग्रहित किया गया है।
कबीर ने उलटबांसियाँ भी कही हैं। पहली बार सुनने में प्राय: ये चौंकाने वाली व निर्थक जान पड़ती हैं, लेकिन इनका गहन अध्ययन करने पर इनका गूढ़ अर्थ समझ आता है और ये सार्थक लगती हैं।
कबीर को पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिला था परंतु विद्वानों के सानिध्य में वे खूब रहे।
"मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।"
साधु-संतों के सत्संग से उन्होंने अनेक शास्त्रों तथा धर्म का समुचित ज्ञान अर्जित कर लिया था। कबीर ने कविता अपना काव्य पांडित्य दिखाने के लिए नहीं की। उनका काव्य भक्ति काव्य है और उनके काव्य में रहस्यवाद के भी दर्शन होते हैं।
कबीर को स्वाधीन और सम्मानजनक जीवन प्रिय था। वो सूखी खाकर ठंडा पानी पीकर भी संतुष्ट थे। कबीर कहते हैं:
खिचड़ी मीठी खांड है, मांहि पडै टुक लूण।
पेड़ा पूरी खाय के, जाण बंधावै कूण ॥